आजमगढ: उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने आज कहा कि सामाजिक परम्पराओं के नाम पर तरक्की की तरफ नही बढने की वजह से मुल्क के मुसलमान सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्तर के मामले में अपने साथी नागरिकों के मुकाबले काफी पिछडे नजर आते हैं.
अंसारी ने इस्लामी शोध संस्थान ‘दारूल मुसन्निफीन शिबली एकेडमी’ के 100वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘पिछले 67 बरसों पर निगाह डालें तो पता लगता है कि हमने बदलाव को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया.’ उन्होंने कहा, ‘हम सामाजिक परम्पराओं को इसकी वजह बताते हैं. हम अपने सहनागरिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में नाकाम रहे हैं. यही वजह है कि हममें सामाजिक शैक्षणिक और आर्थिक समेत हर तरह का पिछडापन नजर आता है. हम इन सभी क्षेत्रों में आगे हो सकते हैं बशर्ते इसके लिए इच्छाशक्ति हो.’ उन्होंने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास’ को जायज और सराहनीय करार देते हुए कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि सभी को एक साझा प्रारंभ बिंदु हासिल हो और सभी लोग जरूरी रफ्तार से आगे बढे. इस क्षमता को हासिल करने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक पहल की जरूरत है. साथ ही सरकार का सहयोग भी जरूरी है. सरकार ने योजनाएं तो बना रखी है लेकिन उन पर सही अमल करने की सख्त जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘नागरिक होने के नाते हर किसी को सामाजिक सुरक्षा शिक्षा रोजगार में हिस्सेदारी और निर्णय लेने में भागीदारी हासिल करने का हक है. यह हमारा हक है कोई खरात नहीं.’ उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हम और आप इस बात से वाकिफ है कि इन सभी अधिकारों को हासिल करने में कमी रह गयी है. मुस्लिम समाज के सामने कानून के दायरे में रहकर अपने इन अधिकारों को हासिल करने की चुनौती है. इसके लिए धर्यपूर्वक लेकिन लगातार प्रयास करने की जरूरत है. साथ ही इस काम में समावेशी रवैया अपनाना होगा.’
अंसारी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की मुस्लिम समाज से अपील को दोहराते हुए कहा, ‘अजीजों अपने अंदर एक बुनियादी तब्दीली पैदा करो. तब्दीलियों के साथ चलो, यह ना कहो कि हम बदलाव के लिए तैयार नहीं थे.’ देश के लिए शिबली एकेडमी के योगदान का जिक्र करते हुए अंसारी ने कहा कि पिछली एक शताब्दी के दौरान इस संस्थान ने अनेक विद्वान दिये हैं. इसने खासकर इस्लामी तहजीब और इस्लामी इतिहास के प्रति खुद को पूरी तरह समर्पित किया. हिन्दुस्तान के लोग इसे अपनी धरोहर तथा अपनी बहुआयामी पहचान के प्रतीक के तौर पर देखते हैं.
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