हिन्दी साहित्य में मुस्लिम कवियों का योगदान

डा. (श्रीमती) वनिता बाजपेयी

साहित्यिक क्षेत्र में मुसलमानों ने हिन्दी की अमूल्य सेवा की है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से वे अत्यधिक प्रभावित हुए। धार्मिक क्षेत्र में वे एक्शेवरवाद को मानते थे। कृष्णभक्ति काव्य से वे सर्वाधिक प्रभावित रहे। पुरुषों ने ही नहीं, मुस्लिम स्त्रियों ने भी कृष्ण की पावन लीलाओं का वर्णन किया। इन मुसलमान भक्त कवियों की प्रशंसा में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कह उठे थे-

इन मुसलमान हरिजनन में कोटिन हिन्दुन वारिये।
प्रेममार्गी शाखा
खड़ी बोली हिन्दी के आदिकवि खुसरो, बलवन के पुत्र मोहम्मद के आश्रित थे। उन्होंने अपनी पहेलियों और मुरकियों से जनता का मनोरंजन किया। अरबी, फारसी के अतिरिक्त उनको संस्कृत का भी ज्ञान था, उन्होंने संस्कृति भाषा में भी काव्य रचना की। उनकी लोकप्रियता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण यह था कि उन्होंने जनसामान्य की भाषा को काव्य भाषा बनाया तथा हास्य-विनोद को माध्यम बनाया।
यथा मुरकी : वह आये तो शादी होय, उस बिन दूजा और न कोय, मीठे लागें वाके बोल, क्यों सखि साजन? न सखि ढोल॥
भक्तिकाल में चार धारा प्रवाहित हुई। दो निर्गुण के अन्तर्गत तथा दो सगुण के अंतर्गत। निर्गुण पंथी की दोनों धाराओं में मुसलमानों कवियों ने अमूल्य योगदान दिया। ज्ञानाश्रयी शाखा के कबीर ने हिन्दी साहित्य की जो सेवा की, वह अमूल्य है। कबीर जिन मुख्य तीन कारणों के हमारे सामने आते हैं, वे हैं मुख्यत: कवि, ज्ञानी की गुत्थियों को बड़े ही रोचक अंदाज में सुलझाया। आत्मा और काया के स्वरूप को देखिए-
यथा, जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी।
फूटा कुम्भ जल जलहिं लगाना, यह तत कथ्यों गियानी॥
काहेरी नलिनी तू कुम्हलानी
तेरे ही नाल सरोवर वानी।
रहस्यवाद के जनक कबीर ने उलटबासियों के माध्यम से गंभीर समस्याओं को उजागर करने की चेष्टा की। आध्यात्मिक प्रेम और विरह की जो तीव्र अनुभूति कबीर के काव्य में मिलती है, वह अन्यत्र नहीं।
कबीर के पश्चात् प्रेमाश्रयी शाखा के प्रधान कवि मलिक मोहम्मद जायसी का नाम आता है। जायसी का पद्मावत् उनकी कीर्ति का अक्षय स्तंभ है। इनमें लौकिक एवं अलौकिक दोनों स्वरूपों का अद्भुत वर्णन है,
नागमति यह दुनिया धन्धा
बांचा सोई न एहि चित बन्धा
राघवं दूत सोई सैतानू
माथा अलाउद्दीन सुल्तानू
प्रेममार्गी शाखा तो एक तरह से मुस्लिम कवियों के नाम ही रही। कुतुबन शेरशाह के पिता हुसैनाशाह के दरबारी कवि थे। इनका मृगावती नानक काव्य उस्मान ने चित्रावली की। इसके अतिरिक्त शेख नबी, कासिमशाह, नूर मोहम्मद तथा फाजिलशाह आदि कवियों ने सुन्दर प्रेम काव्य लिखे।
अकबर के सेनापति बैरमखां के पुत्र अब्दुल रहीम खानखाना ने अपने नीतिपरक दीहों से हिन्दी साहित्य की श्री वृध्दि की। आम बरखेछन्द के जन्मदाता कहे जाते हैं।
यथा-प्रेम प्रीत को बिखा
चल्यो लगाई।
सींचत की सुधि लीजिओ,
कई सुरझ नहीं जाई,
रहीम ने अपने काव्य में प्रेम और नीति दोनों की ही बात की।
यथा- रहिमन यों सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत। ज्यों बड़री अंखिया निरखि, आंखन को सुख होत॥
कृष्ण भक्ति से कई मुस्लिम कवि प्रभावित रहे। ताज नामक मुसलमान महिला ने लिखा-
नन्द के कुमार कुरबान तेरी
सूरत पे।
हों तो मुगलानी, हिन्दूवानी
है रहोंगी में
ताज की ही तरह शेख नाम की रंगरेजिन भी हिन्दी की भक्त कवियित्री रही है।
विशुध्द कृष्ण भक्ति
विशुध्द कृष्ण भक्ति का उज्ज्वल स्वरूप हमें रसखान की रचनाओं में प्राप्त होता है। पठान होते हुए भी उनका मन कृष्ण काव्य में सदैव लीन रहा। परिष्कृत भाषा और भाव सौन्दर्य की दृष्टि से रसखान का स्थान हिन्दी के शीर्ष कवियों में है। सूरदास के सामने रसकान के अतिरिक्त कोई अन्य कवि नहीं ठहराता। यथा-
रसखान कबहूं इन अंखियन सों।
ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारों
कोटिक हूं कलधोत के धाम
करील की कुंजन ऊपर वारा।
मानुष हों तो वही रसखान
बसो ब्रज गोकुल ग्वाल के ग्वारन॥
भक्ति के साथ ही साथ रीतिकाल में भी मुस्लिम कवियों का योगदान रहा। पठान सुल्तान ने बिहारी सतसई की तरह कुंडलियां रचीं। रीतिकाल में सैयद रसलीन नामक प्रसिध्द कवि हुए इनकी अंगदर्पण नाम की पुस्तक प्रसिध्द है। उनका लिखा दोहा, जिस पर कई विद्वानों की यह राय है कि वह बिहारी का है। यथा-
अमि हलाहल मद भरे श्वेत श्याम रतनार
जियत, मरत झुकि-झुकि परत जेहि चितवत इक बार
आगरा में नजीर अकबराबादी ने सर्वसाधारण की भाषा में बड़ी मधुर रचनाएं कीं। इन्होंने हिन्दी और उर्दू शब्दों का समन्वय कर अद्भुत काव्य रचना की।
यारो सुनो ये दधि लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।
क्या-क्या कहूं में कृष्ण कन्हैया का बालपन॥
पद्य के अतिरिक्त गद्य साहित्य में भी मुसलमान लेखकों का योगदान रहा है। गद्य में खडी बोली का श्रीगणेश अमीर खुसरो ने किया। ईशा उल्ला खां ने रानी केतकी की कहानी लिखी।
इस प्रकार हिन्दी साहित्य में मुसलमान कवियों का योगदान प्रारंभ से रहा परन्तु भारत में अंग्रेजों के प्रवेश के उपरांत यह अनुपात क्रमश: कम होता गया, इसके उपरांत भी मुंशी अजमेरी, अख्तर हुसैन रायपुरी, अध्यापक जहूर बख्श, मीर अहमद बिलग्रामो आदि लेखकों ने हिन्दी में अच्छा गद्य लिखा।

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